Friday, July 10, 2009

चोट न होने के बावजूद दुष्कर्म मुमकिन

10 july 2009

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पीड़ित के अंदरूनी अंगों पर चोट के निशान नहीं होने के बावजूद दुष्कर्म के आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है। अदालत ने कहा कि चोट के निशान नहीं मिलने का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि यौन संबंध आपसी सहमति से बनाए गए। जस्टिस वी एस सिरपुरकर और आर एम लोढ़ा की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा, 'पुष्टि करने वाले साक्ष्य दुष्कर्म के हर मामले में न्यायिक विश्वसनीयता का अहम हिस्सा नहीं हैं। पीड़ित के अंदरूनी अंगों पर चोट के निशान नहीं होने को यौन संबंध के लिए उसकी सहमति के तौर पर नहीं माना जा सकता।'सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दुष्कर्म के दोषी राजेंद्र उर्फ पप्पू की दलीलें खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। अभियुक्त के वकील ने दलील दी थी कि पीड़ित के अंदरूनी अंगों पर चोट के निशान नहीं पाए जाने से संकेत मिलते हैं कि उसने यौन संबंध के लिए हामी भरी थी। अभियुक्त के वकील ने यह भी दलील दी कि पीड़ित के बयान के अलावा दुष्कर्म के आरोप की किसी अन्य साक्ष्य से पुष्टि नहीं की गई।सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा, 'दुष्कर्म के मामले में बिना पुष्टि के भी सिर्फ पीड़ित के बयान पर ही भरोसा किया जा सकता है क्योंकि शायद ही कोई स्वाभिमानी भारतीय महिला किसी व्यक्ति पर अपने साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगाएगी।' अदालत ने कहा, 'भारतीय संस्कृति में कोई पीड़ित महिला यौन शोषण को चुपचाप सह तो सकती है लेकिन किसी को गलत तरीके से फंसा नहीं सकती। दुष्कर्म संबंधी कोई भी बयान किसी महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध का शिकार न हो वह असली अपराधी के अलावा किसी पर दोषारोपण नहीं करेगी।'

पत्नी की अनदेखी उत्पीड़न नहीं

Jul 11, 2009
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक हिंसा के मामले में एक अहम फैसला दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि यह साबित होने पर ही कि पति की गैरवाजिब मांगों से आजिज आकर पत्नी ने खुदकुशी या अपनी जान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, पति को पत्नी के उत्पीड़न का दोषी ठहराया जा सकता है।अदालत ने इसके साथ ही कहा कि लेकिन यह बात पति द्वारा अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रखने या उसकी अनदेखी करने पर लागू नहीं होती और इसे भारतीय दंड संहिता [आईपीसी] की धारा 498-ए, 498-बी के तहत पत्नी पर अत्याचार नहीं माना जा सकता। जस्टिस बी।एस. चौहान और मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने सऊदी अरब में रहने वाले एनआरआई एस. बेल्थीसर की याचिका पर यह फैसला दिया। बेल्थीसर ने पत्नी की शिकायत पर केरल पुलिस द्वारा उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मामला दर्ज करने को चुनौती दी थी।